Wednesday, June 18, 2008

आओ मेरे साथ कुछ बातें कर लो सहर की,..................कुमार घायल,

मई कह रहा हु की,...........

मैं वो कलम हूँ जो सिर्फ़ दर्द
का एहसास लीखता हूँ
जो अरमान सीने में दफन हो गए मैं वही अरमान लिखता हूँ
और यहाँ गडे हुए मुर्दों की बात कौन करे
मैं तो जिन्दा इन्सानों की पहचान लिखता हूँ
मैंने कहा की ........................

कभी फुर्सत मीले तो याद कर लेना गांव अपना,
ये सहर तो बहुत ही है खतरनाक अपना,
और बीक रहे हैं जीस्म यहाँ सरे आम सहर में,
बन गया है ये सहर अब बाज़ार अपना........
और कीसको सुनाएं जाकर दर्द की कहानी अपनी
यहाँ तो हर कोई मस्त है करने में कारोबार अपना,
और अभी तलक कीसी की मौत ने रोक रखी है ज़िंदगी मेरी
वरना मैं भी सो जाता बना कर आशियाना अपना॥

मैं कुछ यूँ कह रहा हूँ की .....

जब कभी खून से सने कहीं खंज़र मीले,
तुम देखना दर्द ऐ बचपन के वहीँ मंज़र मीले








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